वन भूमि का अतिक्रमण और कांग्रेस की राजनीति, विरोध को लेकर उठते सवाल


चिरमिरी मनेंद्रगढ़ । जिले में धर्मांतरण और वनभूमि अतिक्रमण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है। ग्रामीण इलाकों में बढ़ते सामाजिक तनाव और प्रशासनिक सख्ती के बाद जहां सभी राजनीतिक दल सक्रिय दिखाई दे रहे हैं, वहीं कांग्रेस पार्टी का रुख विरोधाभासी और अवसरवादी माना जा रहा है। स्थानीय स्तर पर उठ रहे सवालों और दस्तावेज़ों के अनुसार, क्षेत्र में कथित धर्मांतरण गतिविधियों को लेकर ग्रामीणों में नाराज़गी बढ़ रही है। इसी दौरान वनभूमि पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने विवाद को और गहरा कर दिया है।

र्मांतरण पर मौन, अतिक्रमण पर विरोध – कांग्रेस का दोहरा रुख?

दस्तावेज़ों के अनुसार, क्षेत्र में बीते दिनों धर्मांतरण की गतिविधियों में तेजी देखी गई है, जिस पर कई गांवों में बैठकें हुईं और स्थानीय समुदायों ने कड़ी आपत्ति जताई। ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ संगठन धार्मिक आस्था बदलने के लिए लोगों को प्रलोभन दे रहे हैं, जिसके कारण सामाजिक तनाव बढ़ रहा है। प्रशासन ने भी इस विषय को संवेदनशील मानते हुए खुफिया रिपोर्ट्स जुटाना शुरू कर दिया है।

लेकिन इसी गंभीर मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी की चुप्पी ने राजनीतिक माहौल को और गर्मा दिया है। ग्रामीण समुदायों और विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस न तो आरोपों का खंडन कर रही है और न ही आरोपित संगठनों के पक्ष में साफ बयान दे रही है। इस मौन को लोग धर्मांतरण गतिविधियों पर कांग्रेस के अप्रत्यक्ष समर्थन के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी किसी विशेष वर्ग की नाराज़गी से बचने के लिए जानबूझकर इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं ले रही।

वनभूमि अतिक्रमण हटाने पर कांग्रेस का विरोध

दूसरी ओर, जब प्रशासन ने वनभूमि पर प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम पर बनाए गए अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया, तो कांग्रेस पार्टी अचानक सक्रिय हो गई। कार्रवाई का विरोध करते हुए कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन सिर्फ एक विशेष वर्ग को निशाना बना रहा है और वन विभाग की यह कार्रवाई पक्षपातपूर्ण है।

कांग्रेस ने कहा कि जिन लोगों के घर तोड़े गए, वे गरीब और असहाय वर्ग से आते हैं, जिन्हें वैकल्पिक व्यवस्था दिए बिना उजाड़ा गया है। पार्टी ने इसे सरकार की "संवेदनहीनता" और "राजनीतिक भेदभाव" का उदाहरण बताया।

लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का यह विरोध जमीनी सच्चाई से ज्यादा वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है। उनका तर्क है कि अवैध निर्माणों को लेकर कांग्रेस ने कभी पहले कोई शिकायत नहीं की, लेकिन जैसे ही कार्रवाई हुई, पार्टी इसे एक खास समुदाय के हित संरक्षण का मुद्दा बना रही है। इससे कांग्रेस अपने समर्थन आधार को मजबूत करने की कोशिश करती हुई दिखाई दे रही है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि धर्मांतरण का मुद्दा वैचारिक रूप से बेहद संवेदनशील है, इसलिए कांग्रेस इससे दूरी बनाकर चल रही है। इससे पार्टी को दोहरा लाभ मिलता है—एक तरफ किसी समुदाय की नाराज़गी नहीं झेलनी पड़ती, वहीं दूसरी ओर अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई को "भेदभाव" बताकर वह खुद को उनके पक्ष में दिखा सकती है।

मनेंद्रगढ़ जिले में इस समय धर्मांतरण और अतिक्रमण दोनों ही विषय समाज और राजनीति के केंद्र में हैं। प्रशासन की कार्रवाई से जहां एक ओर कानून व्यवस्था को सख्त रखने की कोशिश दिखती है, वहीं कांग्रेस पार्टी के विरोध और मौन ने राजनीतिक परिदृश्य को और उलझा दिया है। ग्रामीणों में भ्रम और असंतोष की स्थिति बनी हुई है, और यह मुद्दा आने वाले दिनों में भी राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बना रह सकता है।

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