श्री रामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भक्ति के कई रूप और कई भेद बताएं हैं जैसे - अनपायनी भक्ति, प्रेमाभक्ति, अविरल भक्ति, विमल भक्ति, परम विशुद्ध भक्ति, सत्य-प्रेम-करुणा भक्ति, गूढ़ प्रेम, तत्व प्रेम, सहज स्नेह भक्ति, नवधा भक्ति इत्यादि





कोरिया छत्तीसगढ़ 

जितेंद्र सिंह की विशेष प्रस्तुति

1:- अनपायनी भक्ति:-

श्रीरामचरितमानस में स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज जिस भक्ति का वर्णन करते हैं उस भक्ति को श्रीहनुमान जी, भरत जी, लक्ष्मण जी, भगवान के अनन्य सखा निषादराज गुह, एवं अनेक ऋषि-मुनियों आदि ने जैसी भक्ति का वरदान प्रभु से मांगा हैं उस भक्ति को हनुमंत लाल जी की भक्ति के तदनुरूप उदाहरण से हम देखें तो मानस,  श्रीमद्भागवतादि ग्रन्थों में श्री हनुमान जी को परम् भागवत (अर्थात ज्ञान वैराग्य सम्पन्न सर्वश्रेष्ठ भक्त) कहा गया है। श्री हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के अवतार हैं(वानराकार विग्रह पुरारी/ हर ते भे हनुमान), और शिवजी स्वयं परम-वैष्णव हैं, अतः भक्ति के उत्तुंग शिखर श्रीहनुमान जी और शिवजी दोनों हैं। शिवजी जब वानराकार हनुमंत स्वरूप धारण करते हैं तो रामावतार लीला में स्वयं प्रभु श्रीराम से अनपायनी भक्ति का वर मांगते हैं!

गोस्वामीजी मानस में लिखते हैं, यथा:-

चौ॰-

नाथ भगति अति सुखदायनी। 

देहु कृपा करि अनपायनी॥ 

सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥ 

भावार्थ:-हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। हनुमान्‌जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब प्रभु श्री रामचंद्रजी ने 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा। 

प्रभु श्रीराम के यह वरदान देने से पूर्व ही श्रीहनुमान जी को पराम्बा श्रीसीताजी द्वारा भक्ति का वरदान मिल चुका था, उन्हें पहले ही माँ सीताजी ने यह अनुपम वरदान सुंदरकांड में अशोक वन में दे दिया था। यथा:-


अजर अमर गुननिधि सुत होहू। 

करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥

भावार्थ:-हे पुत्र! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाना होओ। श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें, वो तुमसे बहुत छोहू अर्थात प्रेम करें।


श्रीसीता जी हैं पराभक्ति, जब तक जीवन में श्री सीताजी रूपी भक्ति नहीं आती और माँ सीता कृपा नहीं करतीं तब तक जीवन में प्रभु की करुणा नहीं होती। पराभक्ति सीताजी की कृपा के अनुग्रह में रहते हुए श्री हनुमान जी महाराज का अनुसरण कर प्रभु श्री राम की "अनपायनी भक्ति" को प्राप्त किया जा सकता है।। 

प्रेम से बोलिए जय सियाराम। 

जय जय श्री हनुमंत लाल। 

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव।।


भागवत किंकर जी

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