कृतजुग त्रेंता द्वापर पूजा मख अरु जोग। जो गति होई सो कलि हरि नाम तें पावहिं लोग।।


 कोरिया छत्तीसगढ़। सतयुग में सारे लोग पुण्यात्मा होते थे। लाख वर्ष की आयु होती थी। शरीर से अत्यन्त पुष्ट होते थे। हजारों वर्ष  एक पैर पर, पैर के अंगुठे पर खड़े होकर योग साधना में लीन रहते थे।

      त्रेता युग में भी संख्या बहुत कम थी, लोगों के पास गोधन की बहुतायत होती थी। सामग्री की कोई कमी नहीं थी, इसलिए लोग बड़े बड़े और ढेरों यज्ञ करते थे।

       द्वापर युग में संख्या बढ़ी थी, लेकिन हर  वस्तु शुद्ध उपलब्ध थी। शुद्ध घी, दूध, दही, अनाज, पूजन सामग्री आसानी से प्राप्त थी।

       इस कलिकाल में मनुष्यों के पास न उम्र है, न सभी लोगों के पास धन है। कोई भी शुद्ध पूजन सामग्री उपलब्ध नहीं है, इसलिए योग-ध्यान, यज्ञ और शुद्ध पूजन भी असंभव है, इसलिए भगवान ने कलिकाल के मनुष्यों पर विशेष कृपा कर दी है कि सिर्फ मेरे नाम का जप करने से ही तुम इस संसार रुपी सागर से पार हो सकते हो।

जय जय श्री राम




कृष्ण विभूति तिवारी 

कोरिया संदेश हेड 

कोरिया छत्तीसगढ़ 

भारत

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