सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ , जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ ॥ जौं नर होइ चराचर द्रोही , आवै सभय सरन तकि मोही ॥ तजि मद मोह कपट छल नाना , करउँ सद्य तेहि साधु समाना ॥


जननी जनक बंधु सुत दारा ,

  तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥

सब कै ममता ताग बटोरी ,

   मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥

समदरसी इच्छा कछु नाहीं , 

   हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥

अस सज्जन मम उर बस कैसे , 

लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसे ॥

तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें ,

     धरउँ देह नहिं आन निहोरें !!

             दोहा : -

सगुन उपासक परहित ,

        निरत नीति दृढ़ नेम ।

 ते नर प्रान समान मम , 

      जिन्ह कें द्विज पद प्रेम !!


भावार्थ :- [ प्रभु श्री रामजी ] ने कहा - हे सखा ! सुनो , मैं तुम्हें अपना स्वभाव कहता हूँ, जिसे काकभुशुण्डि , शिवजी और पार्वती जी भी जानती हैं। कोई मनुष्य [ संपूर्ण ] जड़ - चेतन जगत्‌ का द्रोही हो , यदि वह भी भयभीत होकर मेरी शरण तक कर आ जाए , और मद , मोह तथा नाना प्रकार के छल - कपट त्याग दे , तो मैं उसे बहुत शीघ्र साधु के समान कर देता हूँ..! माता , पिता , भाई , पुत्र , स्त्री , शरीर , धन , घर , मित्र और परिवार ! इन सबके ममत्व रूपी तागों को बटोरकर और उन सबकी एक डोरी बनाकर उसके द्वारा , जो अपने मन को मेरे चरणों में बाँध देता है ! [ तथा सारे सांसारिक संबंधों का केंद्र मुझे बना लेता है ] , जो समदर्शी है , जिसे कुछ इच्छा नहीं है और जिसके मन में हर्ष , शोक और भय नहीं है ! ऐसा सज्जन मेरे हृदय में ऐसे बसता है , जैसे लोभी के हृदय में धन बसा करता है। तुम सरीखे संत ही मुझे प्रिय हैं , मैं और किसी के निहोरे से [ कृतज्ञता वश ] देह धारण नहीं करता...जो सगुण [ साकार ] भगवान्‌ के उपासक हैं , दूसरे के हित में लगे रहते हैं , नीति और नियमों में दृढ़ हैं और जिन्हें ब्राह्मणों के चरणों में प्रेम है , वे मनुष्य मेरे प्राणों के समान हैं...

  उपरोक्त प्रसंग प्रभु श्रीराम और सुग्रीव के मध्य तुलसी बाबा जी बड़ा सुंदर वर्णन किए हैं...

    

 अक्षय तृतीया [ आखातीज ] को अनंत - अक्षय - अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है !  जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं...भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था...भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम , नर - नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए... तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं...वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं...वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है , उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है...यह हैं - चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा , वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया , आश्विन शुक्ल विजया दशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन ! इसीलिए इन्हें वर्ष भर के साढ़े तीन मुहूर्त भी कहा जाता है...अक्षय तृतीया पर तुलसी पूजा करना , न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि इसका अध्यात्मिक महत्व भी है..! इस दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है... इसके साथ ही जीवन में सुख - समृद्धि का वास होता है.... 

  समस्त ब्राह्मण , सनातन धर्म संस्कृति के प्रति समर्पण भक्ति भाव रखने वाले धर्माचारी , भागवत कथा प्रेमियों , आयोजकों को  श्री हरि नारायण के छठवें अवतार श्री परशुराम प्रगट उत्सव/अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं... श्री हरि बांके बिहारी जी कृपा सभी पर बनी रहे....

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ