ग्रन्थ - लक्ष्मण चरित्र
आज रामनवमी है - प्रभु के अवतार की तिथि है। प्रभु ने इस संसार में अवतार क्यों लिया और अवतार लेकर उन्होंने क्या पाया ? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि भगवान राम ने अपनी पूरी लीला में चार वस्तुएँ पायीं।
अवतार लेते ही उन्होंने आँसू पाये। अवतरित होते ही उन्होंने कौशल्या से पूछा - क्या करें ? माता ने कहा - "कीजै सिसुलीला"। बस त्योंही "सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना" - प्रभु की आँखों में आँसू आ गये। तो अयोध्या में उन्हें आँसू मिला।
और जब वे जनकपुर गये तो दूसरी वस्तु मिली। जब वे लता-कुँज से प्रकट हुए तो "भाल तिलक श्रम बिन्दु सुहाए"। इस प्रकार जनकपुर में उन्हें 'श्रमबिन्दु' मिले। अयोध्या में उनके माथे पर पसीना नहीं दिखायी देता। फिर जब दण्डकारण्य गये, चित्रकुट गये 'तो काँटे मिले।' और जब लंका गये तो विभीषण को बचाने की प्रक्रिया में 'उन्हें छाती पर बाण का प्रहार सहना पड़ा।'
तो आज के दिन जब हम श्रीराम का ध्यान करें तो केवल उनकी सुन्दरता को ही न देखें, अपितु उनके उन चरणों पर भी दृष्टि डालें - जो काँटों से बिधे हुए हैं, उन नेत्रों को भी देखें, जिनमें आँसू भरे हुए हैं। उस भाल का भी अवलोकन करें, जो पसीने से भरा हुआ है और उस छाती का भी ध्यान करें, जिसने बाण की चोट सही है। काँटे यदि विघ्न के प्रतीक हैं तो आँसू दु:ख के, पसीना यदि श्रम का प्रतीक है तो बाण काल का।
मानो प्रभु संसार के समस्त जीवों से कहते हैं - मैं तुम्हारा विघ्न, तुम्हारा दु:ख, तुम्हारा श्रम, तुम्हारा काल लेने आया हूँ। 'तुम मुझसे आनन्द लेकर इन वस्तुओं को मुझे दे दो।' प्रभु के अवतार का उद्देश्य ही यह है - सबका दु:ख लेकर अपने आनन्द का वितरण करना। जीवन के इस कण्टकाकीर्ण मार्ग पर चलकर भगवान श्रीराम ने हम लोगों को चलना सिखाया।।
।। श्रीराम: शरणं मम् ।।
।। श्रीरामकिंकर गुरुं शरणं प्रपद्ये ।।
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