नीरज गुप्ता की विशेष रिपोर्ट
कोरिया चर्चा कालरी। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गरीब, पिछड़े और ग्रामीण अंचलों के बच्चों को उत्कृष्ट अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से प्रारंभ की गई स्वामी आत्मानंद योजना आज चर्चा कालरी के विद्यालय में अपनी सार्थकता खोती नज़र आ रही है। शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकता के साथ हो रहा यह व्यवहार न केवल प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है, बल्कि आशाओं के ताने-बाने में बुने बच्चों के भविष्य को तार-तार कर रहा है।
डेढ़ महीने बीत गए, किताबें नहीं आईं......15 जून2025 को शैक्षणिक सत्र का शुभारंभ हुआ लेकिन आज डेढ़ महीने से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद बच्चों को अब तक आवश्यक किताबें नहीं मिल सकीं। लगभग 1250 किताबों की कमी विद्यालय प्रबंधन स्वयं स्वीकार कर रहा है। इससे भी दुर्भाग्यजनक बात यह है कि अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए हिंदी माध्यम की पुस्तकें भेज दी गईं। यह प्रश्न अनिवार्य रूप से उठता है—कि यह लापरवाही किसकी है? और अब तक जिम्मेदार कौन ठहराया गया? इतनी गंभीर गलती होने के बावजूद आंखें बंद रखना बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है
शिक्षक नहीं, शिक्षा अधूरी.... स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में गणित और अर्थशास्त्र जैसे आधारभूत विषयों के शिक्षक विद्यालय में ही नहीं हैं।बच्चों की पढ़ाई बिना दिशा के चल रही है। इस गंभीर समस्या के समाधान के लिएन तो स्थानीय जनप्रतिनिधि जागरूक हैं, और न ही शिक्षा विभाग संवेदनशील। हर बार एक ही उत्तर मिलता है—"व्यवस्था की जा रही है", लेकिन *यह व्यवस्था कब तक आएगी कोई नहीं बता पा रहा।
स्थायी प्राचार्य नहीं, विद्यालय 'प्रभारी' के भरोसे....... स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय चरचा की एक और गंभीर समस्या यह है कि इस विद्यालय में प्रारंभ होने के दिवस से आज तक स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हुई*, शिक्षा विभाग द्वारा हिंदी माध्यम विद्यालय के प्राचार्य से अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों माध्यम के विद्यालय संचालित कराए जा रहे हैं। जबकि बैकुंठपुर स्थित अंग्रेजी माध्यम आत्मानंद विद्यालय में स्थाई प्राचार्य पदस्थ हैं और वहां की व्यवस्था अनुकरणीय है। जिला मुख्यालय के अंग्रेजी माध्यम स्कूल को अंग्रेजी माध्यम का प्राचार्य उपलब्ध कराना और चरचा कालरी के अंग्रेजी माध्यम स्कूल में हिंदी माध्यम के प्राचार्य की नियुक्ति शिक्षा व्यवस्था में भी भेदभाव की ओर इंगित करती है
अभिभावक परेशान, बच्चे हताश....
...... शिक्षकों किताबें की कमी से परेशान अभिभावकों की समस्याओं में कमी नहीं है अभिभावकों का यह भी कहना है कि बच्चों को न तो समय पर होमवर्क दिया जाता है और न ही उसे मोबाइल के माध्यम से साझा किया जाता है, जिससे वे पढ़ाई में सहयोग नहीं कर पा रहे। कक्षाओं में ब्लैकबोर्ड पर लिखा गया पाठ छोटे बच्चों के लिए कठिन होता है , और शिक्षक उन्हें यथोचित तरीके से समझाने में विफल रहते हैं।
क्या इन कमियों को दूर करने की कोई मानवीय जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए?
मिशन 100 या एक सपना?.....जिला शिक्षा विभाग द्वारा सौ प्रतिशत परीक्षा परिणाम प्राप्त करने के लिए चलाई जा रही ‘मिशन 100’ योजना भी इस अव्यवस्था में मूकदर्शक बन गई है। शिक्षकों की कमी, पुस्तकों का अभाव, और प्रशासनिक लापरवाही के चलते क्या यह मिशन एक और कागजी घोड़ा साबित नहीं हो रहा?
यह केवल एक विद्यालय की कहानी नहीं, यह भविष्य की नींव की दरार है,विद्यालयों की दीवारों में अगर न्याय, संवेदना और उत्तरदायित्व नहीं हों, तो वहां पढ़ने वाले बच्चों के सपनों की नींव कमजोर पड़ जाती है। चर्चा कालरी के इस विद्यालय में आज न तो व्यवस्था है, न नेतृत्व, न ही बच्चों के प्रति संवेदनशीलता। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है क्या बच्चों की पढ़ाई से बड़ा कोई और मुद्दा हो सकता है,क्या स्वामी आत्मानंद योजना अब सिर्फ एक नाम भर रह गई है,यदि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला, तो एक पीढ़ी का भविष्य केवल नीतियों और आश्वासनों में खो जाएगा।
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