मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥ कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे सनेहीं॥


हे माँ सिद्धिदात्री! मेरे मनोरथ को आप भली-भाँति जानती हैं; क्योंकि आप सदा सबके हृदयरूपी नगरी में निवास करती हैं। इसी कारण मैंने उसको प्रकट नहीं किया। ऐसा कहकर स्नेहीजन ने उनके चरण पकड़ लिए।

जय माँ दुर्गे!

दुर्गा नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं आप सभी के सुख शांति समृद्धि की प्रार्थना करता  हूं।           कृष्ण विभूति तिवारी कोरिया संदेश परिवार सलका बैकुंठपुर जिला कोरिया छत्तीसगढ़

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