कोई ज़मीन सिर्फ नक्शों से नहीं बनती, वो बनती है वहाँ के लोगों की मेहनत, संस्कृति और संकल्प से और जब बात कोरिया जिले की हो, तो यह सच और भी चमकने लगता है। आज 25 मई को कोरिया अपनी स्थापना की 27वीं वर्षगांठ मना रहा है। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि गौरव, यादों और भविष्य की उम्मीदों से भरा हुआ दिन है।
संगठन से पहचान तक का सफर
1998 में सरगुजा से अलग होकर कोरिया ने अपने नए जिले के रूप में पहला कदम रखा था। तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह शांत, हरियाली से भरपूर इलाका आगे चलकर छत्तीसगढ़ की पहचान का हिस्सा बनेगा। और दो साल बाद जब 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना, तो कोरिया ने अपनी संस्कृति, सादगी और संकल्प के साथ उसमें आत्मा की तरह प्रवेश किया।
प्रकृति, परंपरा और परिवर्तन का संगम,
घने जंगल, कलकल बहती नदियाँ, पहाड़ों की गोद और जनजातीय जीवनशैली कोरिया अपने आप में एक जीवंत विरासत है। यहाँ की मिट्टी में मेहनत की महक है और लोगों की आँखों में उम्मीद की चमक। महिलाएँ जंगलों से महुआ लाती हैं, पुरुष कठोर रास्तों को पगडंडियों में बदलते हैं और बच्चे किताबों से सपने बुनते हैं। यही कोरिया की असली संपत्ति है।
संघर्ष से समर्पण की ओर,
बैकुंठपुर से लेकर चरचा और सोनहत तक, विकास की किरणें अब गाँवों तक पहुँच रही हैं। स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सड़कें और रोजगार योजनाएँ कोरिया के नक्शे को रोशनी से भर रही हैं। यह सब संभव हो पाया है दूरदर्शी नेतृत्व और स्थानीय प्रशासन की प्रतिबद्धता से। जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दृष्टिकोण, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का सुशासन और कलेक्टर श्रीमती चंदन त्रिपाठी के मार्गदर्शन ने मिलकर विकास की गति को नई दिशा दी है।
कोरिया बोल रहा है 'मैं समय के साथ चला हूँ...' 27 वर्षों की यह यात्रा केवल तारीखों की नहीं, बल्कि तजुर्बों की गवाही है। कोरिया कहता है 'मैंने कठिन रास्ते देखे, पर रास्ते बनाना नहीं छोड़ा। मैंने समय बदलते देखे, पर अपनी सादगी नहीं छोड़ी। मैं पहाड़ों में हूँ, पर मेरी उड़ानें आसमान तक जाती हैं। मैं कोरिया हूँ सुकून- सादगी और सपनों का संगम।
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