रामकथा सुंदर कर तारी।
संसय बिहग उड़ावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी।
सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
राम नाम गुन चरित सुहाए।
जनम करम अगनित श्रुति गाए।।
जथा अनंत राम भगवाना।
तथा कथा कीरति गुन नाना।।
भावार्थ:-
श्री रामचन्द्रजी की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुग रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो॥ वेदों ने श्री रामचन्द्रजी के सुंदर नाम, गुण, चरित्र, जन्म और कर्म सभी अनगिनत कहे हैं। जिस प्रकार भगवान श्री रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उसी तरह उनकी कथा, कीर्ति और गुण भी अनंत हैं।
राम चरित जे सुनत अघाहीं।
रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं।।
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ।
हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ।।
भावार्थ:-
श्री रामजी के चरित्र सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं (बस कर देते हैं), उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं। जो जीवन्मुक्त महामुनि हैं, वे भी भगवान् के गुण निरंतर सुनते रहते हैं।
भव सागर चह पार जो पावा।
राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा।।
बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा।
श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा।।
भावार्थ :-
जो लोग इस संसार रूपी भवसागर से पार पाना चाहते हैं उसके लिए सिर्फ राम नाम की नौका काफी हैं। बस एक बार आप भगवान के नाम पर विश्वास करके बैठ जाइये। भगवान श्री राम आपका खुद ही बेडा पार कर देंगे। और जो लोग संसार के विषयों को और सुखों को ढूंढने में लगे हैं भगवान के गुण तो उन लोगो को भी आनंद प्रदान करते हैं।
श्रवनवंत अस को जग माहीं।
जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं।।
ते जड़ जीव निजात्मक घाती।
जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती।।
भावार्थ:-
जगत् में कान वाला ऐसा कौन है, जिसे श्री रघुनाथजी के चरित्र न सुहाते हों। जिन्हें श्री रघुनाथजी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं।
रामकथा ससि किरन समाना।
संत चकोर करहिं जेहि पाना।।
भावार्थ:-
श्री रामजी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संत रूपी चकोर सदा पान करते हैं। और इस कथा को चकोर रूपी संत हमेशा पीते रहते हैं।
बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग।।
भावार्थ:-
सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती, उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना श्री रामचंद्रजी के चरणों में दृढ़ (अचल) प्रेम नहीं होता।
राम कृपाँ नासहिं सब रोगा।
जौं एहि भाँति बनै संजोगा।।
सदगुर बैद बचन बिस्वासा।
संजम यह न बिषय कै आसा।।
भावार्थ:-
यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो।
भगवान की कथा दैहिक, दैविक और भौतिक तीनो ताप को मिटा देती है। श्रीमद भागवत कथा के अंतर्गत आया है की एक बार देवता कथा सुनने के बदले ऋषियों के पास अमृत लेकर पहुंचे थे। तब उन संतो ने कहा का कहाँ मेरी मणि रूपी कथा और कहाँ तुम्हारा कांच रूपी अमृत। कहने का तात्पर्य भगवान की कथा तो अमृत से भी बढ़कर है।
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