घेरा बनाकर ग्रामीणों ने पेड़ में दी जल,
इस अभियान के तहत ग्रामीणों ने अपने घरों से पानी लाकर जामुन के पेड़ के नीचे मिट्टी का घेरा बनाकर जल संचयन का अभ्यास किया, जिससे यह संदेश दिया गया कि अगर समय रहते बरसात के पानी को रोका जाए, तो भूजल स्तर को बनाए रखा जा सकता है।
नारी और पानी का अदभुत संयोग,
कलेक्टर श्रीमती त्रिपाठी ने कहा कि 'जल ही जीवन है' और इसे बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। वर्षा जल को बहने देने की बजाय, अगर हम इसे संरक्षित करें, तो जल संकट की समस्या से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गांवों में छोटे-छोटे तालाब, कुएं और परंपरागत जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना जरूरी है, ताकि बारिश का पानी बर्बाद न हो। उन्होंने 'नारी और पानी' के संबंध पर जोर देते हुए कहा कि 'महिलाएं घर और खेतों में पानी का अधिकतम उपयोग करती हैं, इसलिए जल संरक्षण में उनकी भूमिका अहम है।' उन्होंने सभी से प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने की अपील की।
बरसात का पानी ही भूजल का सबसे बड़ा स्रोत,
जिला पंचायत सीईओ डॉ. आशुतोष चतुर्वेदी ने कहा कि बरसात का पानी ही भूजल का सबसे बड़ा स्रोत है। अगर हम इसे रोकने और संरक्षित करने की दिशा में प्रयास करें, तो सूखे और जल संकट से बच सकते हैं।
चौपाल लगाकर ग्रामीणों को मिली जल संरक्षण व जल संवर्धन के बारे में जानकारी,
कलेक्टर, सीईओ सहित विभिन्न अधिकारियों ने चौपाल लगाकर ग्रामीण को जल संरक्षण व जल संवर्धन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। प्रशासन की इस पहल को जल संचयन और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों को सुरक्षित रखने में मददगार साबित होगा। ग्रामीणों ने इस अभियान की सराहना की और जल संरक्षण का संकल्प लिया।
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