"हाइब्रिड धान को लेकर किसानों का मोह भंग — गुणवत्ता और लागत बनी समस्या, सहकारी समितियों की ओर बढ़ता रुझान


कोरिया बैकुंठपुर ।  कोरिया जिले के ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे अंचल में खेती-किसानी ग्रामीण जीवन का आधार है। परंतु पिछले कुछ वर्षों से किसानों के बीच एक नई चिंता गहराती जा रही है — और वह है हाइब्रिड धान की खेती से मोहभंग। पहले जहां हाइब्रिड बीजों को अधिक उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण किसानों द्वारा हाथोंहाथ अपनाया गया था, वहीं अब किसानों में इससे दूरी बनती जा रही है। इसकी वजहें स्पष्ट हैं — अत्यधिक बीज लागत, गुणवत्ता की गिरावट और फसल के बाद उपज का संतोषजनक मूल्य न मिलना।

महंगे बीजों ने बढ़ाई चिंता

हाइब्रिड धान के बीजों की कीमतें अब आम किसान की पहुँच से बाहर होती जा रही हैं। एक एकड़ खेत के लिए आवश्यक बीजों की कीमत स्थानीय बाजारों में ₹1200 से ₹1500 प्रति किलो तक हो चुकी है। जबकि पारंपरिक या संशोधित (मॉडिफाइड) किस्में सहकारी समितियों या सरकारी कृषि केंद्रों से बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध हैं।

किसान गुरुदेव पांडे, जो कि पिछले चार वर्षों से हाइब्रिड धान की खेती कर रहे थे, कहते हैं —

“हाइब्रिड बीज लेने में ही हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं, और ऊपर से खाद, कीटनाशक व अन्य लागत अलग। फिर भी उपज की गुणवत्ता ऐसी नहीं होती कि अच्छी कीमत मिल सके। अब हमने निश्चय किया है कि आगामी सीजन से सरकारी समिति से बीज लेकर संशोधित धान ही बोएंगे।”

गुणवत्ता पर सवाल, उपभोक्ताओं की भी नाराज़गी

केवल किसान ही नहीं, बल्कि धान का उपभोग करने वाले आम उपभोक्ताओं में भी हाइब्रिड धान की गुणवत्ता को लेकर निराशा देखने को मिल रही है। विशेषकर स्वाद, पका हुआ चावल गीला या गोंद जैसा होना, और भंडारण में जल्दी खराब होने की शिकायतें लगातार मिल रही हैं।

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